बाबा की मूंछ
एक बार की बात है। ये किस्सा है राजस्थान के एक छोटे से गांव का। गांव का नाम रहा होगा यही कुछ मंडोला। ये गांव पूरे राजस्थान की शान था। आखिर गांव की खासियत अपने नाम की तरह ही अजब थी। लेकिन नहीं.. नाम नहीं इसका कारण था वहां के मर्दों की लंबी, बड़ी और घनी मूंछें। मूंछें भी कोई आम नहीं हर तरह की घऩी, नुकीली, मुलायम, कड़क और हद तो तब होती थी जब उनकी तेज तरार मूंछे महिलाओं के घने लंबे केशों के साथ कॉम्पटीशन करने का साहस करती थीं। वहां आए दिन जाने कहां-कहां से लोग सिर्फ इस गांव के लोगों की मूंछे देखने आया करते थे। वहां के मर्दों की मूंछों को महिलाओं के घने काले केशों जैसी ही खातिरदारी होती थी।
लेकिन इन मूंछों के ताव का जोर गांव के समझदार और काफी पढे-लिखे व्यक्ति तुकाराम के परिवार से कोसों दूर था। दरअसल उस परिवार में आजतक किसी के मूंछ ही नहीं आई थी। वे लोग इसी शर्म के कारण गांव के बाहर और शहर के नजदीक मंझोले बन जीवन जीते थे। तुकाराम लाख जतन करके भी कभी मूंछ नहीं उगा पाया। तमाम तेल, शैम्पू, साबुन, इस्तेमाल करने के बाद भी मूंछ न होने के वजह से गांव के लिए ये परिवार एक मजाक बन कर रह गया। जब उनके बेटे नाथु का जन्म हुआ तब तुकाराम ने अपने सारे नुस्खे उस पर भी लगाना शुरु कर दिए। हालांकि लाख जतन कर के भी वो हार ही गए। बेटे के मुंह की रौनक उन केमिकलों ने छीन ली। गांव के सब लोग आए दिन उसका और बेटे का मजाक बनाते, उनकी परवरिश और नस्ल पर टीका-टिप्पणी करते, उनके पढे-लिखे होने पर भी शादी के लिए कोई अपनी बेटी उन्हें नहीं ब्याहना चाहता था। उनके मूंछ न होने के कारण उन्हें एक पिछड़ी जाति की तरह अपना जीवन जीना पड़ा। घर के सब लोग भगवान से मन्नते मांगते, साथ ही हजारों रुपए अपनी कभी न उगने वाली मूंछों पर बिना किसी सोच समझ के इस उम्मीद में खर्चते की कभी न कभी तो मूंछ आएगी। लोग उन पर सरकार का हवाला देते हुए तंज कसते -‘अरे भाई देखो सरकार भी इस विराने पर एक बार जरुर अपने कदम रख यहां की रौनक बढाती है, लेकिन ये तो जाने किस सरकार का कलंक है जो कभी न आई और न ही आएगी!!’
जहां एक तरफ परिवार दुख की घड़ी के खत्म होने के लिए दिन- दिन गिन रहा था। वहीं गांव वालों ने इस परिवार को लज्जित करने की सारी हदें पार कर दी थीं। आए दिन वे तुकाराम को और उसके बेटे नाथु को तंग करते थे। एक दिन तो बहस और मजाक की मूंह की लड़ाई हाथा-पाई में बदल गई। नाथु काफी तनाव में रहने लगा। उसे समझ नहीं आ रहा था आखिर मूंछ न होना इतना बड़ा जुर्म कैसे हो गया!
नाथु अपनी मूंछ न होने के वजह से अपने तनाव को झगड़े में तबदील करने लगा। उसने इसी गुस्से में एक बार एक व्यक्ति का सिर फोड़ दिया था। वहीं शहर में स्तिथी और थी, वहाँ मूंछ होना न होना कोई बड़ी बात न थी। गांव वाले उन्हें शहर वाले बाबू कहकर चिढाते। ये जानते हुए भी खुद तुकाराम का बचपन उन्हीं लोगों के साथ खेल-कुद कर बीता है। जब नाथु की मानसिक परिस्थिती घर के बर्दाश्त से भी बाहर हो गई तो उसकी मां ने उसकी शादी कराने के बारे में सोचा। मां-बाप ने रजामंदी कर शादी भी तय कर दी। गांव के सभी जन चिढे हुए थे कि गांव की बेटियों को पूछे बिना शहरी लड़की इस परिवार का हिस्सा बनने वाली है। ऐसा इसलिए भी था क्योंकि उन्हें लगता था कि अगर वे अपनी बेटी न देंगे तो शादी में नहीं होगी लेकिन परिवार समझदार था। समय रहते उन्होंने सही फैसले को अंजाम दिया।
खैर नाथु और रिसा ने एक दूसरे के साथ सात जन्मों का वायदा करते हुए शादी रचा ली। रीसा गांव वालों की मुर्खता पर अक्सर परेशान रहा करती थी। उसे मुंछों वाली बात बेतुकी लगती थी। लेकिन भोगियों के घर में वो क्या ही कहती। शुक्र है उस वक्त चीनी सामग्रियां नहीं थी नहीं तो इस कहानी का अंत भी चीन पहुंचकर ही होता। हालांकि उसकी नौबत ही नहीं आई क्योंकि कुछ महीने बाद जब रीसा पेट से हुई तब उसे और परिवार को एक उम्मीद मिली कि इस घर की किस्मत अब ये बच्चा ही बदलेगा। रीसा भी अपने वैवाहिक सुख की तलाश में थी। इस समय में होने वाली तकलीफें वो ज्यादा बयां न कर पाई क्योंकि उसके पति और परिवार को न चाहते हुए भी हर वक्त मूंछ की चिंता रहती थी। उस घर में मूंछ तो किसी की थी नहीं लेकिन मूंछो की बात के बगैर न सूरज उगता था और न ही दिन ढलता था। रोज नाथु रात में रीसा से कहता कि, ‘मैं नहीं चाहता हमारे कोई लड़का हो अगर लड़का हुआ तो ये लोग उसे भी जीने न देंगे। मैं चाहता हूं कि तुम एक प्यारी सी बिटिया को जन्म दो।’ रीसा बहुत चौंक गई, उसे यकीन ही नहीं हुआ ये परिवार उसे लड़की जनने के लिए कह रहा है! यकीन होता भी कैसे वो दौर ही था बेटी पैदा करो और मौत के घाट उतारो वाला। लेकिन रीसा खुश थी कि उसका परिवार ऐसी दकियानुसी सोच से परे है। इस बारे में विचार करते हुए रीसा नाथु से पूंछ ही बैठी, क्या तुम सच में चाहते हो हमारे लड़की हो या फिर ये बस बिना मूंछ के बेटे के डर से ऐसा कह रहे हो? नाथु की आंख में आँसु भर आए उसने कहा हमारे होने वाले बच्चे को जन्म देने वाली भी तुम ही हो ‘एक औरत’ तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो हमारी बेटी होगी तो मैं उसे इसलिए नहीं स्वीकारुंगा कि मुझे बेटे की चाह नहीं है बल्कि इसलिए की वो मेरी बच्ची है। लेकिन तुम से झूठ क्यों कहूं मुझे बस बेटे के होने से डर है कि कहीं,... रीसा ने बात काटते हुए कहा, ‘हां ठीक है’। अब जो भी होगा वो हमारे हांथ में कहां है।
रीसा खुश थी कि नाथु ने उससे सच कहा और दोंनों के बीच इस संवाद ने उन्हें हिम्मत दी। रीसा अपने अंतिम दिनों में थी और वो दिन आ ही गया जिसका उसे और उसके परिवार को ही नहीं बल्कि पूरे गांव को इंतजार था। डॉक्टर उस गांव में मुश्किल से ही मिलते थे। भईया.. वो जमाना दाईयों का था लेकिन रीसा ने पहले ही घर में कह दिया था कि वो अपना इलाज डॉक्टर से ही करवाएगी। गांव वालों को एक और मौका देते हुए रीसा ने इस घर को एक बार फिर जुमला बनने पर मजबूर किया। जहां इस बात पर गांव वालों के चहरे बने हुए थे वहीं उनका उत्साह भी चरम पर था कि अब क्या होने वााला है? खैर सब इंतजाम जल्द से जलद हुआ। रीसा की कोख से एक नन्हें बालक का जन्म हुआ। गांव वालों के चहरे खिले क्योंकि लड़के के जन्म से वे अपना मजाक कायम रख पाएंगे वहीं तुकाराम ने अपना सिर पकड़ लिया और नाथु गुस्से में घर से बाहर चला गया।
रीसा जैसे ही होश में आई तो उसने डॉक्टर की ओर आश्चर्य भाव से देखा, डॉक्टर ने नर्स की तरफ इशारा करते हुए कहा -‘ये रहा आपका लाड़ला बेटा’। रीसा घबरा गई और आसपास नाथु को न पाकर उसकी आँखों में आंसु छलक आए। बेटे को गोद में देते हुए नर्स ने हंसते हुए कहा, ‘ये लो इस छोटे से बाबा को इसके तो अभी से ही गजब मूंछे हैं’। रीसा ने नजर दौड़ाई और विषमताओं के आँसु खुशी के आँसुओं में बदल गए। रीसा ने आवाज दी नाथु सुनते हो हमारे बाबा के मूंछ हैं!!.. गांव वाले सुनते ही सदमें में आ गए बोले- अरे! ये कैसे हो सकता है? एक नवजात के मूंछ?.. क्या बावली हो गई है बहु! नाथु और तुकाराम दौड़ते हुए आए और बेटे को गोद में लेकर खिलाने लगे। रीसा बोली ‘मैं कहती थी न हमारे हाथ में कुछ नहीं है।’ नाथु ने उसे गले से लगा लिया। पूरा परिवार फूला नहीं समा रहा था। हालांकि गांव वालों की जान में जान न आई। सब इसी सोच में मशगूल थे कि ये कैसे हो सकता है? ये क्या जादु किया है रीसा ने? कहीं रीसा कोई देवी तो नहीं जिसे उल्हाने देकर हमनें अपने सर कोई पाप मढ लिया? गांव वाले तो हर दिन बच्चे की मूंछ के बाल गिनते और उसके असली होने के प्रमाण की पुष्टी करते थे। लेकिन परिवार में इससे पहले कभी कोई इतना खुश न हुआ था। बाबा ने जब ये कहानी खुद नाथु से सुनी तब उसका दिल पसीज गया और उसके मुलायम गालों पर उगने वाली तेज तरार मु्ंछों की चुभन गौरव में बदल गई। बाबा तब से ही मुंछों की हजामत कराता और खूब शौक से उन्हें संजोता। वो जब भी अपनी मुँछों पर ताव देता घर वाले उसे देख उत्साहित हो जाते थे। गांव वाले बस जलन में कुढते और कुछ उस नन्हें से बाबा की मुंछों का मजा लेते।
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