मैंने सारे कॉमन-अनकॉमन सेंस पढ़ लिए।
सबों को अपने भीतर समा लिया है।
फिर भी ग़र मै कुछ कह भर दूँ तो तुम क्यों मानते हो बुरा?
मेरी अस्मिता क्यों खलती है तुम्हें?
क्या नहीं दिखते वो ज़ख्म जो सजाए जाते हो तुम उन पखडंडियों पर,
चलती हूँ तुम्हारे बाद जिन पर
सबों को अपने भीतर समा लिया है।
फिर भी ग़र मै कुछ कह भर दूँ तो तुम क्यों मानते हो बुरा?
मेरी अस्मिता क्यों खलती है तुम्हें?
क्या नहीं दिखते वो ज़ख्म जो सजाए जाते हो तुम उन पखडंडियों पर,
चलती हूँ तुम्हारे बाद जिन पर
हर पल, हर पल, हर पहर, पहर दर पहर।
मैं क्यों वैसी नहीं दिखती तुम्हें जैसी मैं हूँ?
क्यों मैं वैसी दिखती हूँ जैसी मैं नहीं हूँ?
तुम्हारी दोस्त हूँ, पर दुश्मन जान पड़ती हूँ,
तुम्हारी साथी हूँ पर तुम्हारी योद्धा जान पड़ती हूँ।
हर वक्त एक ही सवाल गूंजता है
क्या तुम्हें सत्य रत्ती भर नहीं सूँघता है?
तुम बेहरे हो या बन गए हो?
तुम मौन हो या कर दिए गए हो?
मैं क्यों वैसी नहीं दिखती तुम्हें जैसी मैं हूँ?
क्यों मैं वैसी दिखती हूँ जैसी मैं नहीं हूँ?
तुम्हारी दोस्त हूँ, पर दुश्मन जान पड़ती हूँ,
तुम्हारी साथी हूँ पर तुम्हारी योद्धा जान पड़ती हूँ।
हर वक्त एक ही सवाल गूंजता है
क्या तुम्हें सत्य रत्ती भर नहीं सूँघता है?
तुम बेहरे हो या बन गए हो?
तुम मौन हो या कर दिए गए हो?
तुम अब कौन हो?
मैं क्यों अनजान हूँ इस भेष से तुम्हारे?
तुम क्यों अनजान हो इस सफ़र से मेरे?
शायद वो तुम थे ही नहीं,
जिसके साथ बितायी सब नादानियां
खाई मार और सुनी अनसुनी गालियां
तुम बदले भी तो वक़्त की तरह
लौटेगा नहीं अब किसी भी तरह
माँ कहती रहेगी कहानियां मेरे बहरे कानों में हर रात
सुबह होगी पिता के मौन में छुपी हज़ारों ख्वाहिशों के साथ
बस तुम न बदलोगे अब...
माँ कहती रहेगी कहानियां मेरे बहरे कानों में हर रात
सुबह होगी पिता के मौन में छुपी हज़ारों ख्वाहिशों के साथ
बस तुम न बदलोगे अब...
क्योंकि अनजान को जानने के लिए
फिर अनजाना बनने की हिम्मत अब मुझमे नहीं।
खुदा बख्शे तुम्हें लम्बी उमर, पाओ जो ढूंढते हो इस राह में
दुआ ही करूँगी क्योंकि तुमसे बोलने का साहस नहीं रहा इस राह में...
Comments
Post a Comment