कि लोग कहते हैं मै शहीद हूं, मैं जानता हूं कि मैं क्या हूं
मैं वोट हूं, मुद्दा हूं, चूल्हा हूं जिस पर सियासी रोटी पकती है।
क्यों याद करते हो मुझे जब शहीद होता हूं
क्यों टीआरपी की आड़ में एजेंडा बनाते हो
मेरी मां के आंसू पर उदास गीत लगाकर उसका मजाक बनाते हो
मेरी शहादत के चमचमाते ग्राफिक्स बनाकर मेरा मजाक उड़ाते हो
न हुआ शहीद तब भी कहां पूंछा तुमने
आत्मीयता की आड़ में राजनीति सदैव की तुमने
मै नाराज नहीं हूं, गुस्सा भी नही हूं, क्योंकि ग़लती तुम्हारी नहीं है
इस कमबख्त पेट की है
कोई ज़मीर बेचता है, कोई अपनी जान देता है
कुछ तो फर्क है हम में।
कोई सियासत करे पड़ा है, कोई उत्पाद बनाए पड़ा है
मैं भी तो इंसान हूँ,
फिर क्यों चुनावों के वक़्त हमे सताते हो
जंग की दुहाई करते हो
जंग क्या है, हमसे बेहतर समझते हो?
मेरा दुश्मन मेरा भाई ही है,
ज़रा सियासत के इन्तेक़ाम का नकाब तो हटाओ
फिर देखो कौन दुश्मन है और कौन साथी
मेरी पैरवी कर रहे बुज़दिल
ज़रा थम और सब्र ए बांध की खै़र कर
मेरे पीछे परिवार है, न मजबूर कर
मेरी राह देख देख, खाने का निवाला नही उतरता।
मैं सोचता हूँ सोच कर की अगली सुबह उनकी पनाह में हो।
ऐसा नहीं कि मैं खिलाफत कर रहा हूं
मै तो बस आपबीती कह रहा हूं
उस समाज से जो अंधा-बटेर बन, एजेंडा की गोदी में खेल रहा है
आप कह सकते हैं मैं ऐन्टी हूं, क्योंकि मै इस सियासत के खिलाफ हूं
मैं हिपोक्रिट भी हूं, ये कहने में शर्म कैसी
मैं जानकर भी अनजान हूं, क्योंकि क्या फर्क पड़ता है
एक दिन फिर तिरंगे में लपेट कर बन्द कर दोगे मेरा इतिहास...
कोई सियासत करे पड़ा है, कोई उत्पाद बनाए पड़ा है
मैं भी तो इंसान हूँ,
फिर क्यों चुनावों के वक़्त हमे सताते हो
जंग की दुहाई करते हो
जंग क्या है, हमसे बेहतर समझते हो?
मेरा दुश्मन मेरा भाई ही है,
ज़रा सियासत के इन्तेक़ाम का नकाब तो हटाओ
फिर देखो कौन दुश्मन है और कौन साथी
मेरी पैरवी कर रहे बुज़दिल
ज़रा थम और सब्र ए बांध की खै़र कर
मेरे पीछे परिवार है, न मजबूर कर
मेरी राह देख देख, खाने का निवाला नही उतरता।
मैं सोचता हूँ सोच कर की अगली सुबह उनकी पनाह में हो।
ऐसा नहीं कि मैं खिलाफत कर रहा हूं
मै तो बस आपबीती कह रहा हूं
उस समाज से जो अंधा-बटेर बन, एजेंडा की गोदी में खेल रहा है
आप कह सकते हैं मैं ऐन्टी हूं, क्योंकि मै इस सियासत के खिलाफ हूं
मैं हिपोक्रिट भी हूं, ये कहने में शर्म कैसी
मैं जानकर भी अनजान हूं, क्योंकि क्या फर्क पड़ता है
एक दिन फिर तिरंगे में लपेट कर बन्द कर दोगे मेरा इतिहास...
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