तुम क्या अस्तित्व बचाओगे तुम खुद के अस्तित्व से वंचित हो!!!

हम केसरिया हैं हम कट्टर हैं हम रक्षक हैं
हम लाल हैं हम विद्रोही हैं हम ख़िलाफ़त हैं
हम काला हैं हम ख़तरा हैं हम बेवजह हैं
हम हरा हैं हम आतंकवाद हैं हम पराये हैं
हम क्यों रंगों में बंटते हैं 
हम क्यों रंगों में बांटते हैं
कि रंग तो ये है होली सा आज लगा कल मिट जाएगा
इंसान हैं हम 
शांत हैं हम
सच्चाई की धारा
का ज़रिया हैं हम
सफेद हैं हम
झगड़े, दंगों से दूर हैं हम

जिस देश में बच्चे बोले हैं
हम देश के सिपाही हम नेता हैं इस आनेवाले राज के
वो बैठे हैं घर में छुपकर सब ज़िम्मेदारियों से पल्ला झाड़े हैं सोशल मीडिया के कीड़े बन देशभक्त कहलाते हैं।

जिस देश में पत्रकार बोले हैं
हम सच्चाई के रखवाले हैं लेकिन पैसों पर बिकने वाले हैं
हम नाप तौल कर बोलेंगे हम विज्ञापन पर बिकने वाले हैं
हम सरकारों  के कुत्ते हैं, पट्टा बाँधे टहलाते वो हम जीभ निकाले चलते हैं।

हम समाज हैं, समाज किससे बनता है -बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य, नौकरी, आर्थिक पूर्तियों से। 
मन्दिर,मस्जिद,गुरुद्वारे,चर्च ने कब किसका पेट पाला है?
किसे रोटी कपड़ा मकान और सर उठा कर जीने की आज़ादी दी है?
धर्म हमारी मान्यता हो सकती है, हमारा कर्म करने का आधार हो सकता है हमारी पहचान कभी नहीं।

ये देश बना है विविधताओं के गुब्बारों से
क्यों कर तुम आये हो अपनी कूटनीति से इन्हें एक एक कर आसमान से नीचे गिराकर इनके अस्तित्व को चोटिल करने को?
तुम कायर हो जो शिक्षा पर प्रहार कर खुद को देशभक्त कहते हो
तुम टुकड़े टुकड़े करने की राजनीति कर हम पर उसका परिणाम मढ़ते हो

तुम क्या अस्तित्व बचाओगे तुम खुद के अस्तित्व से वंचित हो!!!

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