उड़ चल ...




बेपरवाह, उड़ चल...





सुना है ये पर बड़े नादान होते हैं,
जिसके हो जाये उसे कभी छोड़ते नही।
और इन्हीं के सहारे ये पंछी आसमान की
 चादर पर उड़ान भर एक कहानी कहते हैं। 
इस नदी की ठंडी हवा से उनका बस इतना वास्ता है कि नीचे आते ही उन्हें यहां खाना मिलता है। 
वक्त रहते वो मेरे करीब आकर मेरे अंदर जकड़े परों को छेड़ते हैं
मुझसे कहते हैं- वक्त अभी है उड़ चल। कहाँ से आते हैं पता नही, कहाँ जायँगे पता नही,
पर अभी इस वक़्त यहां ये हैं काफी है, इनके होने से मेरे अंदर पैदा होता बेपरवाह एहसास काफी है
इन्हें उड़ते देखना मेरी यादों में कैद होने के लिए काफी है, इनकी उड़ान से मिलने वाली प्रेरणा काफी है।



Comments

Popular Posts